आदमी की औकात उसके ज्ञान और ताकत से नहीं बल्कि उसकी सामाजिक हैसियत से होती है भले ही वह बेईमान हो चरित्रहीन ही क्यों न हो . यही सारे कुकर्म करके आदमी अपनी औकात बनाने में लगा हुआ है जिसका उसे ज्ञान है या नहीं यह तो वाही जाने पर जब उसके इन्ही कुकर्मो को सुकर्मों में तब्दील करने के लिए समाज के वह चहरे आगे आते है जो श्वेत श्याम नकाब वोढे आम आदमी को ठग रहे होते है . इस तरह के आदमी को सम्मान ही नहीं अभिमान भी आदमी नहीं बनने देता है.

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें