आज समय बदलने की हर कोशिस उनके लिए हो रही है जो सामर्थ्यवान है न की उनके लिए जो विकास से छूट गए थे पर जिन्हें लेना है उनमे जरा भी हिम्मत नहीं है की वह अपने हक को हाशिल कर पायें. इन दिनों महिला आरक्षन को लेकर मारा मारी चल रही है डर है की कही हमारे क्षेत्र को महिला के लिए आरक्षित न कर दिया जाये. अपनी ही महिलायों को वह आरक्षण देने में आना कानी कर करा रहे हैं. भला हो इन सांसदों का कितने चालू है इससे पता चलता है की ये किसी के सगे नहीं है.
मंगलवार, 30 जून 2009
रविवार, 28 जून 2009
जाति-संकिरनता और सामाजिक न्याय

एक जमाना था जब ठाकुर होने का गुमान इतना होता था की वह उंच नीच नहीं सोचता था और अपनी हबस को पूरा करने के लिए कुछ भी कर बैठता था . शायद उसे यह अभिशाप रहा होगा की वह जिसके साथ रहेगा उसका भला नहीं देख पायेगा . और इससे इतर भी कुछ लोग इस कौम में है जिससे अभी इनका मान बचा हुआ है . फूट डालना इनका धरम है करम है वफादारी जाती से इतेर बमुश्किल ही नज़र आती है .
आज जब लोकतंत्र का जमाना है तब भी इनकी मानसिक दशा वैसी ही है. वैसे तो इनका रोब दाब बहुत घटा है पर लोंगो की इज्जत लुटाने में इन्हे मज़ा आता है जिसकी गवाह भारतीय फिल्मे है .यही कारन है की आजाद भारत में आबादी और संकट में जुझ रहे लोंगो की लम्बी जमात एक जुट इनके खिलाफ नहीं हो पाती है.
सामाजिक न्याय की तकते इनकी गुलामी से आज तक ऊबर नहीं पाई है जिसके लिए नए आन्दोलन की जरुरत आ गयी है जिसमे उन लोंगो की जरुरत है जिनसे निक्कम्मे और नकारे राजनेता हरप न पायें .
आदमी की औकात
आदमी की औकात उसके ज्ञान और ताकत से नहीं बल्कि उसकी सामाजिक हैसियत से होती है भले ही वह बेईमान हो चरित्रहीन ही क्यों न हो . यही सारे कुकर्म करके आदमी अपनी औकात बनाने में लगा हुआ है जिसका उसे ज्ञान है या नहीं यह तो वाही जाने पर जब उसके इन्ही कुकर्मो को सुकर्मों में तब्दील करने के लिए समाज के वह चहरे आगे आते है जो श्वेत श्याम नकाब वोढे आम आदमी को ठग रहे होते है . इस तरह के आदमी को सम्मान ही नहीं अभिमान भी आदमी नहीं बनने देता है.
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